ATTACK ON TRUMP: पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप तो हमले में बाल-बाल बच गए लेकिन इस अटैक ने अमेरिका में बहुत बड़ी बहस खड़ी कर दी है। सियासत ही नहीं आम लोग भी इस बहस में ख़ूब हिस्सा ले रहे हैं। कुछ इसके पक्ष में हैं तो कुछ विपक्ष में। ये बहस बहुत ख़ास है क्योंकि इसे लेकर क़ानून बने तो अमेरिका में हर साल होने वाले हज़ारों मर्डर पर पूर्ण विराम लग जाएगा। जिस गन कल्चर के कारण अब तक लाखों लोग मारे गए हैं।
हमले के बाद ट्रंप ने कहा कि "मैं तो मरने वाला था, मुझे तो यहां नहीं होना चाहिए था। सबसे अविश्वसनीय बात ये थी कि मैंने ना सिर्फ़ अपना सिर घुमाया, बल्कि बिल्कुल सही समय पर और सही तरीक़े से घुमाया। जो गोली मेरे कान को छू गई वो आसानी से मेरी जान ले सकती थी।"
अमेरिका के पूर्व प्रेसिडेंट और रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसिडेंट कैंडिडेट डॉनल्ड ट्रंप की जान बच गई लेकिन कैसे बची। शूटर से ऐसी कौन सी चूक हो गई कि आठ राउंड गोलिया दागने के बावजूद उसका वार ख़ाली गया। इस सवाल का जवाब अमेरिका की तेज़ तर्रार सीक्रेट सर्विस तलाश रही है। जिसमें अब तक सिर्फ़ दो प्वाइंट क्लियर हो सका है और ये दोनों सिर्फ़ संयोग हैं ना कि सीक्रेट सर्विसेज़ का ऐक्शन।
जानिए कैसे बची ट्रंप की जान?
आगे आपको बताएंगे कि जिस बीस साल के हमलावर ने ट्रंप पर गोली चलाई उसके पास बंदूक कहां से आई। किसने दी। शार्प शूटर को ट्रंप को शूट करने का किसने दिया था ऑर्डर। किसने की थी ट्रंप की जान लेने की साज़िश?
पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा में सीक्रेट सर्विस के 75 एजेंट तैनात होते हैं। इसके अलावा जहां जाते हैं वहां की लोकल पुलिस और FBI एजेंटों का घेरा होता है। जहां मंच होता है वहां के आसपास की बिल्डिंग पर स्नाइपर तैनात होते हैं। मतलब फ़ुल प्रूफ़ सिक्योरिटी का पूरा इंतजाम होता है। लेकिन एक बीस साल का लड़का आता है और ट्रंप पर गोली चला देता है। संयोग से गोली कान को छूती हुई निकल जाती है और ट्रंप बच जाते हैं। इस घटनाक्रम को पूरी दुनिया ने देखा। लिहाजा सवाल तो खड़े होते ही हैं कि उस दिन ऐसा क्या हुआ कि ट्रंप की जान जाते-जाते बच गई।
ऐसे बच गई डॉनल्ड ट्रंप की जान
- वजह नंबर 1
- शूटर के पास असॉल्ट राइफ़ल मिली।
- इस राइफ़ल चार सौ से लेकर छह सौ मीटर तक की दूरी पर निशाना लगाया जा सकता है
- राइफ़ल के चेंबर में एक साथ कई गोलियां होती हैं, जिसकी वजह से इसकी स्टैबलिटी उतनी अच्छी नहीं होती
- तो ये भी संयोग ही था क्योंकि शूटर के पास स्नाइपर गन होती जिससे
- एक बार में एक ही फायर किया जा सकता है
- तो इसकी स्टैबलिटी और निशाना चूकने की गुंजाइश बिल्कुल नहीं होती।
लेकिन गोली चूक गई और ट्रंप बच गए दूसरी वजह देखते हैं। अक्सर ट्रंप भाषण के दौरान टेलीप्रॉम्पटर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन पेंसिलवेनिया में उस दिन उन्होंने टेलीप्राॉम्पट पढ़ने से मना कर दिया। इसका फायदा समझिए।
ऐसे बच गई डॉनल्ड ट्रंप की जान
वजह नंबर 2
एक्सपर्ट का मानना है कि अगर ट्रंप टेलीप्रॉम्पटर से पढ़ रहे होते, तो उनका सीधा फोकस टेलीप्रॉप्टर पर ही होता. और उनका सिर एक जगह पर स्थिर होता। जिससे गोली चलती तो सीधे उनके सिर में लग सकती थी।
उस दिन संयोग पर संयोग हुए। डॉनल्ड ट्रंप की जान लेने की कोशिश नाकाम हो गई। लेकिन आपको दिखाते हैं कि उस ऐसी कौन सी बात हुई जिस पर संग्राम छिड़ा है क्योंकि संयोग के अलावा एक साज़िश की गुंजाइश दिखती है और ये बहुत सामान्य नहीं है। इसे बहुत ग़ौर से समझने की ज़रूरत है।
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ट्रंप की जान लेने की साज़िश फ़ेल
अमेरिकी रष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति की पब्लिक मीटिंग के दौरान वहां मौजूद हर ऊंची बिल्डिंग,घर की छत पर बकायदा स्नाइपर तैनात किए जाते हैं। लेकिन उस दिन ट्रंप जिस मंच से भाषण दे रहे थे, उसके ठीक पीछे मौजूद गोदाम की छत पर तो स्नाइपर तैनात थे। यहां तक कि मंच की बांयी तरफ बने गोदाम पर भी स्नाइपर तैनात थे।
लेकिन मंच की बांयी तरफ़ 137 मीटर दूर फैक्ट्री या इसकी छत पर कोई स्नाइपर तैनात नहीं। जहां से शूटर ने 8 राउंड गोलिया दागी। ऐसा लगता है कि इस जगह को जानबूझकर कर खुला छोड़ दिया गया हो।
अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर है। सोशल मीडिया पर ये भी कहा जा रहा है कि चूंकि नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव है लिहाजा हो सकता है कि ट्रंप ने सहानुभूति बटोरने के लिए ख़ुद पर हमला करवाया हो। जबकि रिपब्लिकन पार्टी यानी ट्रंप की पार्टी इसका आरोप बाइडन प्रशासन पर लगा रही है।
आतंकी हमले से जोड़कर जांच
सच क्या है किसी को नहीं पता। अमेरिकी की सीक्रेट सर्विसेज़ ने केस क्लोज करने के लिए इसे लोन वुल्फ़ अटैक मान लिया। यानी किसी भी आतंकवादी संगठन का इसमें कोई हाथ नहीं।
लेकिन एक और बात जो हैरत में डालती है वो ये कि अगर शूटर अकेला था तो उसे घेरकर भी पकड़ा जा सकता था। पूछताछ की जाती। और शक की गुंजाइश ख़त्म हो जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसे वहीं मौके पर सुरक्षा एजेंसियों ने ढेर कर दिया। लिहाजा साज़िश और सुलग रही है। लेकिन जिस लड़के के हाथ में बंदूक थी वो कोई अचंभा नहीं था। ये अमेरिका के गन कल्चर का नतीजा है। आपको आंकड़ों के ज़रिए दिखाते हैं कि कैसे अमेरिकी गन कल्चर वहां के लोगों की जान ले रहा है।
अमेरिका में गन इस तरह से मिलती है, जैसे किसी स्टोर से सब्जियां और फल।
करीब 34 करोड़ की आबादी वाले देश में अभी 40 करोड़ बंदूकें लोगों के पास हैं। गोलीबारी की घटनाओं में बीते 50 साल में 14 लाख लोगों ने जान गंवाई। अमेरिका में औसतन हर दिन 100 लोग मारे जाते हैं। द ट्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1899 से अब तक अमेरिका में 49.4 करोड़ बंदूकें बेची गईं। 2023 में 1.67 करोड़ बंदूकें बेची गईं। 2024 में हर महीने अमेरिकी करीब 14 लाख बंदूकें खरीद रहे हैं। इस साल जनवरी से अप्रैल तक करीब 55 लाख बंदूकें खरीदी जा चुकी हैं।
सवाल है लोग बंदूक के इतने दीवाने क्यों हैं। क्यों हर दूसरे को चाहिए जान लेने वाला हथियार। इसकी वजह आपको ग्राफ़िक्स के ज़रिए आगे दिखाएंगे। अभी कुछ देशों की तस्वीर जहां अमेरिका की तरह ही गन कल्चर फल फूल रहा है।
दस देशों की लिस्ट देखिए जिसमें हर 100 आदमी पर कितनी बंदूके हैं।
- टॉप पर है अमेरिका- 120.5
- दूसरे नंबर पर है यमन- 52.2
- तीसरे नंबर पर है सर्बिया- 39.1
- चौथा है मोंटेनेग्रो- 39.1
- पांचवां उरुग्वे – 34.7
- छठा कनाडा- 34.7
- सातवां साइप्रस- 34
- आठवां फ़िनलैंड- 32.4
- नौवां लेबनान- 31.9
- दसवां आइसलैंड- 31.7
लेकिन ये ध्यान देने वाली बात है कि ज़्यादा गन खरीदने वाले देशों में फिनलैंड जैसा देश भी है जो दुनिया का सबसे ख़ुशहाल देश माना जाता है। आइसलैंड भी है जहां से शूटआउट की अमेरिका की तरह हर दूसरे दिन कोई ख़बर नहीं आती। लिहाजा सवाल है कि अमेरिका में गन के प्रति लगाव इतना क्यों है। आखिर लोग इतनी बंदूकें क्यों खरीदते हैं, क्या है वजह? प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक ज्यादातर अमेरिकी निजी सुरक्षा की वजह से गन खरीदते और रखते हैं। अमेरिका में गन खरीदने और रखने की वजह से कई बार सनकपन या गुस्से में लोग दूसरे पर बात-बात में फायरिंग कर देते हैं और दूसरों की जान ले लेते हैं। हालांकि, गन रखने को लेकर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स समर्थक बंटे हुए हैं।
अमेरिका में लगातार बढ़ रहे हमले
- 2020 में अमेरिका में मास शूटिंग की कुल 647 घटनाएं दर्ज की गई थीं।
- 2020 में मास शूटिंग में कुल करीब 45 हजार लोग मारे गए थे।
- आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में हर महीने 53 फायरिंग यानी हर दिन दो जगहों पर मास शूटिंग की घटनाएं सामने आती हैं।
अमेरिका में कई बार गन कंट्रोल का सवाल उठा लेकिन अमेरिका का नेशनल राइफल एसोसिएशन सबसे ताकतवर गन लॉबी है, जो गन कल्चर के खिलाफ कानून बनाने से सरकार को रोकता है। ये एसोसिएशन कांग्रेस सदस्यों पर इतना खर्च करता है कि वो ताकतवर गन पॉलिसी नहीं बना पाते हैं। गन लॉबी के प्रभाव के चलते ही अमेरिकी सरकार आज तक कोई सख्त कानून नहीं ला पाई है।
आखिर लोग इतनी बंदूकें क्यों खरीदते हैं?
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में सुरक्षा कारणों से सबसे ज़्यादा 72 परसेंट लोग गन खरीदते और रखते हैं। शिकार करने लिए 32 परसेंट लोग बंदूक खरीदते हैं। शूटिंग स्पोर्ट्स के लिए 30 परसेंट, गन कलेक्शन के लिए 15 परसेंट और नौकरी के चलते 7 परसेंट हथियार रखते हैं।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी और सीनेटर रॉबर्ट केनेडी और समाज सुधारक मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्याओं के बाद गन कंट्रोल एक्ट पारित हुआ। इससे कम उम्र के लोगों, आपराधिक बैकग्राउंड वाले लोगों के गन रखने पर अंकुश लगाया गया। अमेरिका के गन कल्चर को रोकने के लिए जून 2022 में राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बिल पर दस्तखत भी किए थे। इस कानून में बंदूक खरीदारों के रिकॉर्ड चेक करने, हथियार वापस लेने और कई दूसरे प्रोग्राम चलाने की योजना बनाई गई थी। उस वक्त इस बिल पर साइन हुए बाइडन ने कहा था कि ये कानून लोगों की जान बचाने में मददगार होगा। लेकिन दो साल भी कुछ नहीं बदला। ट्रंप तो बच गए लेकिन अमेरिका में आमलोग आए दिन इस ख़ूनी कल्चर का शिकार होते हैं और अमेरिका मौन रहता है क्योंकि गन लॉबी से उसे पैसा मिलता है और यही पैसा जान का दुश्मन बना बैठा है।