Chandrayaan-3 Mission: चांद पर कैसे काम करेगा चंद्रयान 3, लैंडर और रोवर में इस बार क्या हुए हैं बदलाव?

भारत इतिहास रचने के क़रीब है... चंद्रयान 3 की चंद्रमा पर लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है... अब से कुछ घंटों के बाद भारत उस कीर्तिमान को हासिल करने जा रहा है जिसका उसे सालों से इंतज़ार था... देर रात चंद्रयान 3 ने प्री लैंडिंग ऑर्बिट के लिए दूसरी डीबूस्टिंग पूरी कर ली है... यानी अब चंद्रयान की चंद्रमा से दूरी महज़ कुछ किलोमीटर की बची है

इसे जरूर पढ़ें।

चंद्रमा पर लेंडिंग के लिए चंद्रयान का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। सॉफ्ट लैंडिंग के बाद अगले 14 दिन तक चंदयान 3, चांद से जुड़ी तमाम जानकारी भेजेगा। लेकिन इस बार चंद्रयान में कुछ ऐसी तब्दीली की गई हैं कि अगर वो कामयाब रहती हैं तो ये मिशन सिर्फ 14 दिन नहीं बल्कि ज़्यादा दिन तक चलने की उम्मीद हैं।

चंद्रमा की सतह से छूने के लिए चंद्रयान तैयार है। 20 अगस्त की रात जब हम सो रहे थे तब विक्रम लैंडर ने कामयाबी के एक और पायदान को पार किया। चंद्रयान ने अपने मिशन के एक और हिस्से को पूरा किया। चंद्रयान 3, चांद के एक दिन में ही काम करेगा और इसे इसी हिसाब से काम करने के लिए डिजाइन भी किया गया है। चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है और ऐसे में वो सिर्फ पृथ्वी के 14 दिन तक ही काम कर पाएगा। लेकिन इस बार मिशन चंद्रयान में कई तब्दीली की गई है। तब्दीली ये कि चंद्रयान को स्लीपिंग एंड वेकिंग की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है..

यानी ज़रूरत के हिसाब से चंद्रमा पर चंद्रयान काम करेगा। 14 दिन तक सारी जानकारी को भेजेगा और 14 दिन के बाद एक अल्प विराम लेगा और दोबारा से फिर चार्ज होकर आगे बढ़ेगा। ये तकनीक अगर कामयाब होती है कि तो भारत की ये सबसे बड़ी कामयाबी होगी।

14 दिन रोवर के लैंडर से बाहर निकलने के बाद से काउंट होंगे और इन दिनों के हिसाब से इसकी टाइमिंग वगैहरा को सेट किया गया है। इस वक्त विक्रम लैंडर का अहम पड़ाव रफ्तार पर कंट्रोल करना है और लैंडिंग के लिए एक मुफीद जगह की खोज करना है। प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर और रोवर अलग हो गए हैं। लैंडर और रोवर तो अब चांद की लैंडिंग की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अभी प्रोपल्शन मॉड्यूल चांद की कक्षा में घूमता रहेगा। ये कम्युनिकेशन बनाए रखने के लिए चक्कर लगाता रहेगा। साथ ही डेटा कलेक्ट कर जमीन पर भेजता रहेगा।

चंद्रयान 3 में लैंडर को इस बार बहुत मज़बूत बनाया गया है। उसके लेग्स को पहले से ज़्यादा स्टे करने लायक तैयार किया गया है। सेंसर का ज़्यादा इस्तेमाल है जो सॉफ्ट लैंडिग में कारगर साबित हो सकते हैं। स्लीपिंग वेकिंग कॉन्सेप्ट का इस्तेमाल ठंड से मशीनों को बचाने के लिए होता है। लैंडर और रोवर दोनों में ये सर्किट है। अगर ये काम कर जाता है तो चांद पर 14 दिन और आगे खोज की जा सकती है ।

=========================

चांद पर जय हिन्द’

चंद्रयान 3.O लॉन्च 

14 जुलाई

चांद की पहली कक्षा में पहुँचा

5 अगस्त

चांद की दूसरी कक्षा में पहुँचा

6 अगस्त

चांद की तीसरी कक्षा में पहुँचा

9 अगस्त

प्रॉपल्शन और लैंडर अलग हुए

17 अगस्त

चांद की दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग होगी

23 अगस्त

चलो चांद पर चलें 

चांद से कितनी दूर है चंद्रयान 3? =        चांद से सिर्फ़ 113 Km दूर है चंद्रयान 3 का लैंडर

कब होगी चंद्रयान 3 की लैंडिंग? =       23 अगस्त को चांद पर उतरेगा लैंडर

लैंडिंग में अभी क्या मुश्किल?    =        लैंडर की रफ़्तार 2 मीटर प्रति सेकंड लानी होगी

23 अगस्त को ही लैंडिंग क्यों?  =          अभी चांद पर रात है 23 अगस्त को चांद पर सूर्योदय होगा

23 अगस्त को ही लैंडिंग क्यों? =           लैंडर, रोवर ताक़त पैदा करने के लिए सोलर पैनल का इस्तेमाल करेंगे 

चंद्रयान 3 क्या काम करेगा?     =         धरती से आने वाले रेडिएशन का अध्ययन करेगा

चंद्रयान 3 क्या काम करेगा?     =         चांद की सतह पर पानी, खनिज की खोज करेगा

साउथ पोल पर ही चंद्रयान 3 क्यों भेजा गया? =     2008 में चंद्रयान 1 ने चांद के इस हिस्से में पानी के संकेत दिए थे

इस बार लैंडर में 5 की जगह 4 इंजन क्यों?  =      पांचवें इंजन की जगह ईंधन भेजा गया है 

14 दिन का ही मिशन क्यों? =               चांद पर 14 दिन रात और 14 दिन उजाला होता है

14 दिन का ही मिशन क्यों?   =            उजाले में मिशन को पूरा करने में आसानी होगी

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article